Sunday, 16 June 2019

प्रथमा विद्येश्वरसंहिता अथ चतुर्थोऽध्यायः

 ॐश्रीशिवमहापुराणम्ॐ
प्रथमा विद्येश्वरसंहिता - अथ चतुर्थोऽध्यायः ॐ 
|| संकलन - बाबा चरणदास || 

पूजाजपेशगुणरूपविलास नाम्नां युक्ति प्रियेण मनसा परिशोधनं यत्।
तत्सन्ततं मननमीश्वर दृष्टि लभ्यं सर्वेषु साधनवरेष्वपि मुख्यमुख्यम्।1।

भगवान शंकर की पूजा, उनके नामों के जप तथा उनके गुण, रूप, विलास और नामों का युक्ति परायण चित्त के द्वारा जो निरंतर परिशोधन या चिंतन होता है, उसी को मनन कहा गया है। वह महेश्वर की कृपा दृष्टि से उपलब्ध होता है। उसे समस्त श्रेष्ठ साधनों में प्रधान या प्रमुख कहा गया है।1।

सूत उवाच

अस्मिन् साधनमाहात्मये पुरावृत्तं मुनीश्वराः।
युष्मदर्थं प्रवक्ष्यामि श्रृणुध्वमवधानतः।2।

सूत जी कहते हैं--मुनिश्वरो इस साधन का महात्म्य बताने के प्रसंग में मैं आप लोगों के लिये एक प्राचीन वृतान्त का वर्णन करुँगा, उसे ध्यान देकर आप सुनें।2।

पुरामम गुरूर्व्यासः पराशरमुनेः सुतः।
तपश्चार सम्भ्रान्तः सरस्वत्यास्तटे शुभे।3।

पहले की बात है, पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव जी सरस्वती नदी के सुन्दर तट पर तपस्या कर रहे थे।3।

गच्छन यदृच्छया तत्र विमानेनार्करोचिषा।
सनत्कुमारो भगवान ददर्श मम देशिकम्।4।

एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान सनत्कुमार अकस्मात वहाँ जा पहुँचे।4।

ध्यानारुढ़ः प्रबुद्धोऽसौ ददर्शतमजात्मजम्।
प्रणिप्रत्याह सम्भ्रांतः परं कौतूहलं मुनिः।5।

दत्त्वार्घ्यमस्मै प्रददौ देवयोग्यं च विष्टरम्।
प्रसन्नः प्राह तं प्रह्वं प्रभुर्गम्भीरया।6।

उन्होंने मेरे गुरू को वहाँ देखा। वे ध्यान में मग्न थे। उससे जगने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार जी को अपने सामने उपस्थित देखा।
देखकर वे बड़े वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्घ्य दिया और देवताओं के वैेठने योग्य आसन भी अर्पित किया। तब प्रसन्न हुए भगवान सनत्कुमार विनीत भाव से खड़े हुए व्यास जी से गम्भीर वाणी में बोले--।5-6।

सनत्कुमार उवाच

सत्यं वस्तु मुने दध्याः साक्षात्करणगोचरः।
स शिवोऽथ सहायोऽत्र तपश्चरसि किंकृते।7।

मुने तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो। वह सत्य पदार्थ भगवान शिव ही हैं। जो तुम्हारे साक्षात्कार के विषय होंगे।7।

श्रवणं कीर्तनं शम्भोर्मननं च महत्तरम्।
त्रयं साधनमुक्तंच विद्यते वेदसम्मतम्।8।
भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन,मनन ये तीन महत्तर साधन कहे गए हैं। ये तीनों ही वेद सम्मत हैं।8।

पुराहमथ सम्भ्रान्तो ह्यन्यसाधनसम्भ्रमः।
अचले मन्दरे शैले तपश्चरणमाचरम्।9।

 पूर्वकाल में मैं दूसरे दूसरे साधनों के संभ्रम में पड़कर घूमता घामता मंदराचल पर जा पहुंचा और वहाँ तपस्या करने लगा।9।

शिवाज्ञया ततः प्राप्तो भगवान नन्दिकेश्वरः।
स मे दयालुर्भगवान् सर्वसाक्षी गणेश्वर।10।
उवाच मह्यं सस्नेहं मुक्तिसाधनमुत्ततम्।
श्रवणं कीर्तनं शम्भोर्मननं च महत्तरम्।11।

तदनन्तर महेश्वर शिव कीआज्ञा से भगवान नंदिकेश्वर वहाँ आये उनकी मुझ पर* बड़ी दया थी।
वे सबके साक्षी तथा शिवगणों के स्वामी भगवान नंदिकेश्वर मुझे स्नेह पूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले- भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन,मनन ये तीन महत्तर साधन कहे गए हैं। ये तीनों ही वेद सम्मत हैं।10-11।

त्रिकं च साधनं मुक्तेः शिवेन मम भाषितम्।
श्रवणादित्रिकं ब्रह्मन् कुरुष्वेति मुहुर्मुहुः।12।

भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन और मनन ये तीनों साधन वेदसम्मत हैं और मुक्ति के साक्षात कारण हैं। यह बात स्वयं शिव ने मुझसे कही है। अतः ब्रह्मन तुम श्रवणादि तीनों साधनों का ही अनुष्ठान करो।12।

एवमुक्त्वा ततो व्यासंं सानुगो विधिनन्दनः।
जगाम स्वविमानेन पदं परमशोभनम्।13।

 व्यास जी से बारम्बार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम् सुंदर ब्रह्म धाम को चले गये।13।

एवमुक्तं समासेन पूर्ववृत्तान्तमुत्तमम्।
श्रवणादित्रियं सूत मुक्त्युपायस्त्वयेरितः14।

श्रवणादित्रिकेऽशक्तः किं कृत्वा मुच्यते जनः।
अयत्रेनैव मुक्तिः स्यात् कर्मणा केन हेतुना।15।

 इस प्रकार पूर्वकाल के इस उत्तम वृत्तान्त  को मैने संक्षेप में वर्णन किया है। ऋषि बोले  सूतजी श्रवणादि तीन साधनों को आपने मुक्ति का उपाय बताया है। किंतु जो श्रवण आदि तीनों साधनों में असमर्थ हो, वह मनुष्य किस उपाय का अबलम्बन करके मुक्त हो सकता है। किस साधन भूत कर्म के द्वारा बिना यत्न के ही मोक्ष मिल सकता है।14-15।

इति श्रीशिवमहापुराणे प्रथमायां विद्येश्वरसंहितायां साध्यसाधनखण्डे चतुर्थोऽध्यायः।।4।।

ॐ जय बाबा की ॐ 
|| बाबा चरण दास || 

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