Sunday, 16 June 2019

श्रीशिवपुराण माहात्म्य - अथ तृतीयोअध्याय

श्रीशिवपुराण माहात्म्य
  अथ तृतीयोअध्याय
   मूल पाठ एवं हिंदी व्याख्या

|| संकलन - ॐ बाबा चरण दास || 

सूत सूत महाभाग सर्वज्ञोसि महामते।
त्वत्प्रसादात् कृतार्थोहं कृतार्थोहं पुनःपुनः।1।

महाभाग सूत जी  आप सर्वज्ञ है। महामते आपके कृपाप्रसाद से मे बारंबार कृतार्थ हुआ।1।

इतिहासमिमं श्रुत्वा मनो मेतीव मोदते।
अन्यामपि कथाम् शम्भोर्वद प्रेमविवर्धिनीम्।2।

इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत आनंद मै निमग्न हो रहा है। अतः अब भगवान शिव में प्रेम बढाने वाली शिव सम्बन्धिनी दूसरी कथा को भी कहिये।2।

सूत उवाच

श्रुणु शौनक वक्ष्यामि त्वदग्रे गुल्टह्यमप्युत।
यतस्त्वं शिवभक्तानामग्रणीर्वैदत्तमः।3।

सूत जी बोले  शौनक सुनो, मै तुम्हारे सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करूँगा, क्योंकि तुम शिवभक्तों में अग्रगण्य तथा वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हो।3।

समुद्रनिकटेदेशे ग्रामो बाष्कलसंज्ञकः।
वसन्ति यत्र पापिष्ठाऊ वेदधर्मोञ्झिता जनाः।4।

समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश में एक वाष्कल नामक ग्राम है जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते हैं।4।

दुष्टा दुर्विषयात्मनो निर्दैवा जिह्मवृत्तयः।
कृषीवलाःशस्त्रधराः परस्त्रीभोगिनःखलाः।5।

वे सब के सब बड़े दुष्ट हैं, उनका मन दूषित बिषय भोगों में ही लगा रहता है। वे न देवताओं पर विश्वास करते हैं न भाग्य पर, वे सभी कुटिल वृति वाले है।किसानी करते और भांति भांति के घातक अस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी और खल हैं।5।

ज्ञान वैराग्य सद्धर्म न जानन्ति परं हि ते।
कुकथाश्रवणाढ्येषु निरताः पशुबुद्धयः।6।

ज्ञान,वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिए परम पुरुषार्थ है इस बात को वे बिल्कुल नहीं जानते हैं। वे सभी पशु बुद्धि वाले है तथा बुरी वार्ता सुनने में ही रुचि रखते हैं।6।

अन्ये वर्णांश्च कुधियः स्वधर्म विमुखाः खलाः।
कुकर्मनिरता नित्यं. सदा विषयिणश्च ते।7।

अन्य वर्णों के लोग भी उन्हीं की भाँति कुत्सित विचार रखने वाले ,स्वधर्म विमुख एवं खल है। वे सदा कुकर्म में 
प्रवृत रहते है |७ | 

स्त्रियः सर्वाश्च कुटिलाः स्वैरिण्यः पापलालसाः।
कुधियो व्यभिचारिण्यः सद्वृत्ताचारवर्जिताः।8।

वहाँ की सब स्त्रियाँ भी कुटिल स्वभाव की, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं।8।

एवं कुजन संवासे ग्रामे बाष्कल संज्ञिते।
तत्रैको बिन्दुगो नाम विप्र आसीन्महाधमः।9।

इस प्रकार वहाँ दुष्टों का ही निवास है।उस वाष्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था।9।

स दुरात्मा महापापी सुदारोपि कुमार्गगः।
वेश्यापतिरर्बभूवाथ कामाकुलितमानसः।10।

वह बड़ा अधम था। दुरात्मा, महापापी स्त्री सहित कुमार्ग पर चलने वाला काम से व्याकुल होकर वेश्यागामी हो गया था।10।

स्वपत्नीं चंचुलां नाम हित्वा नित्यं सुधर्मिणीम्।
रेमे स वेश्यया दुष्टः स्मरबाणप्रपीडितः।11।

वह दुष्ट चञ्चुला नामक अपनी पत्नी का त्याग कर काम बाण से पीडित होकर वेश्या के साथ रहने लगा।11।

एवं कालो व्यतीयाय महांस्तस्य कुकर्मिणः।
सा स्वधर्मभयात् क्लेशात् स्मरार्तापि च चञ्चुला।12।

इस प्रकार उस कुकर्मी का बहुत समय व्यतीत हो गया।उसकी पत्नी चञ्चुला अपने धर्म और क्लेश का भय होते हुए भी काम से आक्रांत हो गई।12।

अथ तस्यांगना सापि प्ररुढनवयौवना।
अविषह्यस्मरावेशा स्वधर्माद्विरराम ह।13।

वह अत्यंत तरूणाई को प्राप्त थी, उसने कामदेव से पीडित होकर अपने धर्म का त्याग कर दिया।13।

जारेण संगता रात्रौ रेमे पापेन गुप्ततः।
पतिदृष्टं वञचयित्वा भ्रष्टसत्त्वा कुमार्गगा।14।

जार की संगति में अपने पति की दृष्टि बचाकर रहने लगी।वह अपने सत से भ्रष्ट तथा कुमार्गगामिनी हो गयी।14।

एवं त्योस्तु दम्पत्योर्दुराचारप्रवृत्तयोः।
महानकालो व्यतीयाय निष्फलो मूढचेतसो।15।

इस तरह दुराचार में डूबे उन मूढ चित्त वाले पति पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ व्यतीत हो गया।15।

अथ विप्रः स कुमतिर्बिन्दुगो बृषलीपतिः।
कालेन निधनं प्राप्तो जगाम नरकं खलः।16।

तदनन्तर शूद्र जातीय वेश्या का पति बना हुआ वह दूषित बुद्बि वाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग  समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो नरक मैं जा पडा।16।

भुक्त्वा नरकदुःखानि बह्वहानि स मूढधीः।
विन्ध्येभवत् पिशाचो हि गिरौ पापी भयंकरः।17।

बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह मूढ बुद्धि पापी विन्ध्य पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ।17।

मृते भर्तरि तस्मिन्वै दुराचारे अथ बिन्दुगे।
उवास स्वग्रहे पुत्रैश्चिरकालं विमूढधीः।18।

उस दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढह्रदया चञ्चुला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर मैं ही रही।18।

एकदा देवयोगेन संप्राप्ते पुण्य  पर्वणि।
सा नारी बन्धुभिः सार्धं गोकर्ण क्षेत्र माययो।19।

एक दिन देवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह स्त्री भाई बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गई।19।

प्रसंगात सा तदा गत्वा कस्मिंश्चित् तीर्थ पाथसि।
सस्नौ सामान्यतो यत्र तत्र बभ्राम बन्धुभिः।20।

तीर्थयात्रियों के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल में स्नान किया।फिर वह साधारणतया मेला देखने की दृष्टि दे इधर उधर घूमने लगी।20।

देवालये अथ कस्मिंश्चिद्दैवज्ञमुखतः शुभाम्।
शुश्राव सत्कथां शम्भोः पुण्यां पौराणिकीं च सा।21।

घूमती घूमती वहकिसी देव मंदिर मैं गयी और वहाँ उसने एक दैवज्ञ् ब्राह्मण के मुख से भगवान शिव की परम पवित्र एवं मंगल कारिणी कथा सुनी।21।

योषितां जारसक्तानां नरके यमकिंकराः।
सन्तप्तलोहपरिघं क्षिपन्ति स्मरमन्दिरे।22।

कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे। कि जो स्त्रियाँ पर पुरुषों के साथ व्यभिचार जाती है,  तब यमराज के दूत उनकी 
योनि मैं तपे हुए लोहे का परिघ डालते हैं ।22।

इति पौराणिकेनोक्तां श्रुत्वा वैराग्य वर्धिनीम्।
कथामासीद्भयोद्विग्रा चकम्पे तत्र सा च वै।23।

पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढाने वाली कथा सुनकर चञ्चुला भय से व्याकुल हो वहाँ कांपने लगी।23।

कथा समाप्तौ सा नारी निर्गतेषु जनेषु च।
भीता रहसि तं प्राह शैवं संवाचकं द्विजम्।24।

,जब कथा समाप्त हुई और सुनने वाले सब लोग वहाँ से बाहर चले गये, तब वह भयभीत नारी एकांत मैं शिवपुराण की कथा बांचने वाले उन ब्राह्मण देवता से बोली।24।

ब्रह्मन स्वं श्रृण्वसद्धत्तमजानन्त्या स्वधर्मकम्।
श्रुत्वामामुद्धार स्वामिन कृपां कृत्वा तुलामपि।25।

चञ्चुला ने कहा ब्रह्मन मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी।इसलिए मेरे द्वारा बडा दुराचार हुआ है। स्वामिन मेरे ऊपर कृपा करके मेरा उद्धार कीजिए।25।

श्रुत्वेदं वचनं ते अद्य वैराग्यर सजृम्भितम्।
जाता महा भया साहं सकम्पात्तयियोगिका।26।

आज आपके इस वैराग्य रस से ओत प्रोत प्रवचन सुनकर मुझे बडा भय लग रहा है और मै भय से कांप उठीं हूं और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है।26।

धिङ् मां मूढधियं पापां काम मोहितचेतसम्।
निन्द्यां दुविषयासक्तां विमुखीं हि स्वधर्मतः।27।

मुझ मूढ चित्त वाली पापिनी को धिक्कार है।मैं सर्वथा निन्दा के योग्य हूं।कुत्सित विषयों मे फंसी हुई हूं।और अपने धर्म से विमुख हो गई हूं।27।

यास्यमिदुर्गति कां कां घोरां हा कष्ट दायिनीं।
को ज्ञो यास्यति मां तत्र कुमार्गरतमानसाम।28।

हाय न जाने किस किस घोर कष्टदायक दुर्गति मैं मुझे पड़ना पड़ेगा और वहाँ कौन बुद्बिमान पुरुष कुमार्ग मैं मन लगाने वाली मुझ पापिनी का साथ देगा।28।

मरणे यमदूतांस्तान्कथं द्रक्ष्ये भयंकरान्।
कथं पाशैर्बलात्कण्ठे बध्यमाना धृतिं लभे।29।

मृत्युकाल मैं उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी, जब वे बल पूर्वक मेरे गले मैं फंदे डालकर मुझे बांधेंगे तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकूंगी।29।

कथं सहिष्ये नरके खंडशो देह कृन्तनम्।
यातनां तत्र महतीं दुःखदां च विशेषतः।30।

नरक मैं जब मेरे शरीर के टुकड़े टुकड़े किये जाएंगे, उस समय विशेष दुःख देने वाली उस महायातना को मैं वहाँ कैसे सहूंगी।30।
किं करोमि क्व गच्छामि कं वा शरणमाश्रये।
कस्त्रायते मां लोकेस्मिन् पतन्ती नरकार्णवे।31।

मैं क्या करुं, कहां जाऊं किसकी शरण गहूँ। मुझ नरक सागर में गिरी हुई स्त्री की रक्षा करने मैं इस लोक में समर्थ कौन है।31।

त्वमेव मे गुरुर्ब्रह्मंस्त्वं माता त्वं पितासि च।
उद्धरोद्धर मां दीनां त्वामेव शरणं गतां।32।

ब्रह्मन आप मेरे गुरू, आप ही माता और आप ही पिता हैं। आपकी शरण मैं आयी हुई मुझ दीन अबला का आप ही उद्बार कीजिए।32।

सूत उवाच

इति सञ्जातनिर्वेदां पतितां चरणद्वये।
उत्थाप्य कृपया धीमान् बभासे ब्राह्मणः स हि।33।

सूत जी कहते है--शौनक इस प्रकार खेद औऱ वैराग्य से युक्त हुई चञ्चुला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों मैं गिर पड़ी। तब उन बुद्बिमान ब्राह्मण ने कृपा पूर्वक उसे उठाया और इस प्रकार कहा।33।

इति श्रीस्कान्दे महापुराणे शिवपुराणमाहात्म्ये चञ्चुला वैराग्य वर्णनं नाम तृतीयो अध्यायः।।3।।

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