Sunday, 16 June 2019

श्रीशिवपुराण माहात्म्य - अथ प्रथमोअध्याय

श्रीशिवपुराण माहात्म्य
  अथ प्रथमोअध्याय
मूलपाठ अर्थ सहित 

संकलन बाबा चरणदास 

हे हे सूत महा प्राज्ञ सर्व सिद्धांतवित प्रभो।
आख्याहि मे कथासारं पुराणानां विशेषतः।1।

श्रीशौनक जी ने पूछा महाज्ञानी सूत जी आप सम्पूर्ण 
सिद्धान्तों के ज्ञाता है। प्रभो मुझसे पुराणों की कथाओं 
के सारतत्त्व का विशेषरुप से वर्णन कीजिए।1|

सदाचारश्च सद्भक्तिर्विवेको वर्धते कथम्।
स्वविकार निरासश्च सज्जनैः क्रियतेकथम्।2।

ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त 
होने वाले विवेक की वृद्धि कैसे होती है तथा साधु 
पुरुष किस प्रकार अपने काम, क्रोध आदि 
मानसिक विकारों का निवारण करते है ।2|

जीवाश्चासुरतां प्राप्ताः प्रायो घोरे कलाविह।
तस्य संशोधने किं हि विद्यते परमायनम्।3।

इस घोर कलिकाल में जीव प्रायः आसुर स्वभाव 
के हो गए है। उस जीव समुदाय को शुद्ध दैवी सम्पत्ति 
से युक्त बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है।3|

यदस्ति वस्तु परमं श्रेयसां श्रेय उत्तमम्।
पावनं पावनानां च साधनं तद्वदाधुना।4।

आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन 
बताइए, जो कल्याणकारी बस्तुओं में भी सबसे उत्कृष्ट 
एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करने वाले 
उपायों में भी सर्वोत्तम पवित्र कारक उपाय हो ।4|

येन तत्साधनेनाशु शुध्यत्यात्मा विशेषतः।
शिवप्राप्तिर्भवेत्तात सदा निर्मल चेतसः।5।

तात वह साधन ऐसा हो जिसके अनुष्ठान से 
शीघ्र ही अंतःकरण की विशेष शुद्धि हो जाये 
तथा उससे निर्मल चित्तवाले पुरुष को सदा 
के लिए शिव की प्राप्ति हो जाये।5|

सूत उवाच 

धन्यस्त्वं मुनिशार्दूल श्रवणप्रीतिलाललसः।
अतो विचार्य सुधिया वच्मि शास्त्रं महोत्तमम्ं।6।

श्रीसूत जी ने कहा मुनिश्रेष्ठ शौनक तुम धन्य हो, 
क्योंकि तुम्हारे हृदय में पुराण कथा सुनने का विशेष 
प्रेम एवं लालसा है।इसलिये में शुध्द बुद्धि से विचारकर 
तुमसे परम उत्तम शास्त्र का वर्णन करता हूँ।6| 

सर्वसिद्धान्त निष्पन्नं भक्त़्यादिकविवर्धनम्।
शिवतोषकरं दिव्यं श्रृणु वत्स रसायनम्।7।

वत्स वह सम्पूर्ण शास्त्रों के सिद्धांत से सम्पन्न 
भक्ति आदि को बढ़ाने वाला तथा भगवान शिव को 
संतुष्ट करने वाला है। कानो के लिए रसायन 
अमृतस्वरूप तथा दिव्य है।7| 

कालव्यालमहात्रास विध्वंसकरमुत्तमम्।
शैवं पुराणं परमंशिवेनोक्तं पुरा मुने।8।

 तुम उसे श्रवण करो। मुने वह परम उत्तम शास्त्र है 
शिव पुराण , जिसका पूर्वकाल में भगवान शिव ने ही 
प्रवचन किया था। यह काल रूपी सर्प से प्राप्त होने वाले 
महान त्रास का विनाश करने वाला उत्तम साधन है।8|

जन्मान्तरे भवेत् पुण्यंं महद्यस्य सुधीमतः।
तस्य प्रीतिर्भवेत्तत्र महा भाग्यतो मुने।9।

गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर बड़े 
आदर से संक्षेप में ही इस पुराण का प्रतिपादन किया है। 
इस पुराण के प्रणयन का उद्देश्य है कलयुग में उत्पन्न 
होने वाले मनुष्यों के परम हित का साधन।9|

एतच्छिवपुराणं हि परमं शास्त्र मुषत्तमम्।
शिवरूपं क्षितौ ज्ञेयं सेवनीयं च सर्वथा।10।
यह शिव पुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस 
भूतल पर भगवान शिव का वांग्मय स्वरूप समझना 
चाहिए। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधन रूप है|10|

पठनाच्छृवणादस्य भक्तिमान्न रसत्तमः।
सद्यः शिवपदप्राप्तिं लभते सर्वसाधनात्।11।

इससे शिवभक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुंचा हुआ 
मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है।11|
  
तस्मात् सर्व प्रयत्नेन काङ्क्षितं पठनं नृभिः।
तथास्य श्रवणंं प्रेम्णा सर्वकामफलप्रदम्।12।

इसलिए सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण 
को पढ़ने की इच्छा की है , अथवा इसके अध्ययन को 
अभीष्ट माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक सम्पूर्ण 
मनोवांछित फलों को देने ,वाला है।12|

पुराण श्रवणाच्छम्भोर्निष्पापो जायते नरः।
भुक्त्वा भोगान सुविपुलान् शिवलोकमवाप्नुयात्।13।

भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य  
सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन मे 
बड़े बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके 
अंत मे शिवलोक को प्राप्त कर लेता है।13|

राजसूयेन यत्पुण्यमग्निष्टोमशतेन च।
तत् पुण्यंं लभते शम्भोः कथा श्रवण मात्रतः।14।
राजसूय यज्ञ या सौ अग्निष्टोम से जो पुण्य 
प्राप्त होता है  वह पुण्य शिवजी की कथा 
सुनने मात्र से ही मिल जाता है।14|

ये श्रृण्वन्ति मुने शैवं पुराणं शास्त्रमुत्तमम्।
ते मनुष्या न मन्तव्या रुद्रा एव न संशयः।15।

हे मुनि श्रेष्ठ शिवपुराण का जो मनुष्य 
श्रवण करते है, वे मनुष्य नहीं वरन साक्षात 
रुद्र रूप ही है इसमें संदेह नहीं है।15|

श्रृण्वतां तत् पुराणं हि तथा कीर्तयतां च तत्।
पादाम्बुजरजांस्येव तीर्थानि मुनयो विदुः।16।

इसके सुनने वालों और कीर्तन करने वालों की चरण 
रज भी तीर्थ स्वरूप है, ऐसा मुनि जनों का कथन है।16|  

 गन्तु निःश्रेयसं स्थानं येभिवाञ्छन्ति देहिनः।
शैवं पुराण ममलमं भक्त्या श्रण्वन्तु ते सदा।17।

कल्याणपद स्थान की कामना वाले जीवों को नित्य 
शिवजी के निर्मल पुराण का श्रवण करना चाहिए।17|

सदा श्रोतुं यद्य शक्तो भवेत स मुनिसत्तम।
नियतात्मा प्रतिदिनं श्रृणु याद्वा मुहूर्तकम्।18।

यदि सब काल सुनने में समर्थ न हों 
तो नियमपूर्वक दो घड़ी ही इसे सुने।18|

यदि प्रतिदिनं श्रोतुमशक्तो मानवो भवेत्।
पुण्यमासादिषु मुने श्रृणु याच्छिवपुराणकम्।19।

यदि प्रतिदिन सुनने में समर्थ न हों तो 
पवित्र महीनों में शिवपुराण का श्रवण करें।19|

मुहूर्तं वा तदर्धंं वा क्षणं च वा।
ये श्रण्वन्ति पुराणं तन्न तेषां दुर्गतिर्भवेत ।20।

जो व्यक्ति  शिवपुराण एक मुहूर्त, उससे 
आधा अथवा क्षण मात्र को भी सुनते है, 
वे दुर्गति को प्राप्त नहीं होते।20|

तत्पुराणं च श्रृण्वानः पुरुषो यो मुनीश्वर।
स निस्तरति संसारं दग्ध्वा कर्ममहाटवीम्।21।

हे मुनिवर इस महापुराण को जो प्राणी 
सुनते है वे कर्म रूपी विकराल वन को भस्म 
कर संसार सागर से पार हो जाते है।21|

यत्पुण्यं सर्व दानेषु सर्व यज्ञेषु वा मुने।
शम्भोःपुराण श्रवणात्तत्फलं निश्चलं भवेत्।22।

 हे मुने सम्पूर्ण यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है 
वह शिवपुराण सुनने से अवश्य  ही मिल जाता है।22|

विशेषतः कलौ शैव पुराण श्रवणादृते।
परो धर्मो न पुंसां हि मुक्ति साधन कृन्मुने।23।

विशेषकर कलिकाल में मुक्ति का साधन रूप 
शिवपुराण के अतिरिक्त अन्य कोई धर्म नहीं है।23|

पुराण श्रवणं शम्भोरनाम संकीर्तनम तथा।
कल्पद्रुमफलं सम्यङ मनुष्याणां न संशयः।।24।।

शिवपुराण  श्रवण करना या शिव नाम 
संकीर्तन करना मनुष्यों के लिए कल्पवृक्ष 
के समान फलदायी है। इसमें संदेह नहीं है।24|

कलौ दुर्मेधसां पुंसां धर्मचारोंझितात्मनाम।
हिताय विदधे शम्भुः पुराणाख्यं सुधारसम।25।

कलयुग में जिन दुरर्मेधी पुरुषों ने अपने धर्म 
को छोड़ दिया है उनके लिये भी यह अमृत 
स्वरुप हित करने वाला है।25|

एको जरामरः स्याद्वै पिबनन्नेवामृतं पुमान।
शम्भोःकथामृतं कुर्यात कुलमेवाजरामरम।26।

 इस अमृत को जो पीता है वह अजर अमर 
हो जाता है। और शिवजी के कथामृत से कुल 
को भी अजर अमर कर देता है।26|

सदा सेव्या सदा सेव्या सदा सेव्या विशेषतः।
एतच्छिवपुराणस्य कथा परम पावनी।27।

विशेषकर इसका सदा सेवन करे। 
इसकी कथा परम पवित्र करने वाली है|27|

एतच्छिवपुराणस्य  कथा श्रवण मात्रतः।
किं ब्रब्रीम फलं तस्य शिवश्चित्तं समाश्रयेत।28।

इस कथा के सुनने मात्र से ही जो फल प्राप्त 
होता है उसे  में क्या कहूं ? शिवजी में अपने 
मन को समर्पित कर दे।28|

एतच्छिवपुराणस्य  कथा भवति यदि ग्रहे।
तीर्थभूतं हि तद् गेहं वसतां पापनाशनम्।29।

जिस ग्रह में शिवपुराण की कथा होती है, 
वह साक्षात तीर्थ के समान है उसमें निवास 
करने से पापों का नाश हो जाता है।29।

अश्वमेधसहस्राणि वाजपेय शतानि च।
कलां शिवपुराणस्य नारहन्ति खलु षोडशीम्।30।

हजारों अश्वमेध और सौ वाजपेय यज्ञ भी 
शिवपुराण की सोलहवीं कला के समान नहीं है।30।

गङ्गाद्याः पुण्यनद्यश्च सप्तपुर्यो गया तथा।
एतच्छिवपुराणस्य  समतां यान्ति न क्वचित।31।

सहस्र गंगा आदि सप्तनदी, सप्तपुरी तथा 
गया भी इसकी समता नही कर सकतीं।31|

नित्यं शिवपुराणस्य श्लोकं श्लोकार्धमेव च।
स्वमुखेन पठेद्भक्त्या यदीच्छेत् परमां गतिम् ।32।

परमगति की कामना वाले पुरूष को 
भक्ति  पूर्वक नित्य प्रति शिवपुराण का 
एक या आधे श्लोक का पाठ करना चाहिए।32।

एतच्छिवपुराणं यो वाचयेदर्थतोनिशम्।
पठेद्वा प्रीतितो नित्यं स पुण्यात्मा न संशयः।।33।

शिवपुराण का जो पुरूष भक्ति पूर्वक 
नित्यप्रति पाठ करता और श्रवण करता है 
उसके पुण्यात्मा होने में संदेह नहीं है।33।

एतच्छिवपुराणं यः पूजयेन्नित्यमादरात ।
स भुक्त्वेहाखिलान कामानन्ते शिवपदं लभेत।34।

शिवपुराण का आदर पूर्वक नित्य प्रति 
पूजन करने वाले मनुष्य सभी कामनाओं को 
भोग कर अंत में शिवपद को प्राप्त होते है।34।

एतच्छिवपुराणस्य कुर्वन्नित्यमतन्द़ितः।
पट्टवस्त्रादिना सम्यक् सत्कारं स सुखी सदा।35।

नित्य प्रति निरालस्य होकर इसका पाठ 
करने से तथा नित्य पट्ट वस्त्रादि से सत्कार 
करने से सर्वदा सुख की प्राप्ति होती है।35।

शैवं पुराणममलं शैवस सर्वस्व मादरात।
सेवनीयं प्रयत्नेन परत्रेह सुखेप्सुना ।36।

यह अत्यन्त स्वच्छ एवं सर्वस्व है। 
जिसे दोनों लोकों में सुख प्राप्ति की इच्छा हो उसे 
आदर पूर्वक शिवपुराण का पाठ करना चाहिए ।36।

चतुर्वर्गप्रदं शैवं पुराणममलं परम्।
श्रोतव्यं सर्वदा प्रीत्या पथितव्यं विशेषतः।37।

यह निर्मल शिवपुराण चतुर्वर्ग का दाता है। 
इसका पाठ एवं श्रवण सदा प्रीतिपूर्वक करना चाहिए।37।

वेदेतिहासशास्त्रेषु परं श्रेयस्करं महत।
शैवं पुराणं विज्ञेयं सर्वथा हि मुमुक्षुभिः ।38।

वेद इतिहास तथा शास्त्रों मैं यह परम 
श्रेय प्रदायक है। इसलिए मुमुक्ष जनों को 
सदा शिवपुराण ज्ञान आवश्यक है।38।

शैवं पुराणमिदमात्मविदां वरिष्ठं 
सेव्यं सदा परमवस्तु सता समर्च्यम्।
तापत्रयाभिशमनं सुखदं सदैव 
प्राणप्रियं विधिहरुशमुखामराणाम्।39।

आत्म ज्ञानियों के लिए यह शिवपुराण अत्यंत उत्तम है।
परम वस्तु सदा सेवनीय और सत्पुरुषों को पूजनीय है।
त्रिताप नासक, सुखदायक है। ब्रह्मा, विष्णु और देवता 
गणों के लिए प्राणों के समान प्रिय है।39।

वन्दे शिवपुराणं हि सर्वदाहं प्रसन्नधीः ।
शिवः प्रसन्नतां यायाद् दद्यात्स्वपदयो रतिम्।40।

मैं प्रसन्न होकर शिवपुराण को सदा 
प्रणाम करता हूँ। शिवजी इसके द्वारा प्रसन्न 
होकर अपने चरणों की प्रीति मुझे प्रदान करें।40।

इति श्रीस्कान्दे महापुराणे शिवपुराण 
माहात्म्ये तन्महिमवर्णनम नाम प्रथमोअध्यायः

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